काकोरी काण्ड: क्या थी काकोरी कांस्प्रेसी कौन-कौन थे इसमें शामिल? क्यों हर जगह के लोग आ गए थे उन क्रांतिकारियों के समर्थन मे? सर्वप्रथम काकोरी कांड के उन नायकों को मेरा शत शत नमन । उस समय की अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को हिलाया था H.R.A हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस के नायकों ने जिनमें प्रमुख थे। पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खाँ चंद्रशेखर आज़ाद, योगेशचन्द्र चटर्जी, , मुकुन्दी लाल, .विष्णुशरण दुब्लिश, रामकृष्ण खत्री, .मन्मथनाथ गुप्त, राजकुमार सिन्हा, ठाकुर रोशानसिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिडी, गोविन्दचरण कार, रामदुलारे त्रिवेदी, रामनाथ पाण्डेय, शचीन्द्रनाथ सान्याल, भूपेन्द्रनाथ सान्याल आदि। आज उन आजादी के परवानों की यह कहानी आपको बता देगी की आजादी भीख में नहीं मिली है , इनके जैसे देशभक्तों ने अंग्रेजों के जबड़ो से आजादी छीनी है।
काकोरी कांड –
9 अगस्त 1925 रात 2:45 8 सहारनपुर लखनऊ पैसेंजर ट्रेन जिसको रोका गया और अंग्रेजों द्वारा भारतवर्ष से लूटा हुआ पैसा जो ट्रेन में लेजाया जा रहा था,जो हमारा ही पैसा था उसे वापस लिया और अंग्रेजों ने उसे लूट का नाम दे दिया। सचिंद्रनाथ सान्याल और योगेश चंद्र चटर्जी ये क्रांतिकारी नेता हिंदुस्तान पब्लिक ऐसोसिएशन बंगाल के कर्ताधर्ता थे | बंगाल में उस समय बहुत बड़ी क्रांति चल रही थी और उसी समय एक ऐसा हादसा हुआ कि सभी क्रांतिकारियों का मनोबल गिरने लगा और उनकी रीढ़ टूटने लगी, क्योंकि यह दोनों नेता लखनऊ और कोलकाता में पकड़े गए इनका पकड़ना इतनी बड़ी समस्या नहीं थी. परंतु ये एच०आर०ए० के संविधान की ढेर सारी प्रतियों के साथ पकड़ लिये गये जिसमें उनकी बनाई रणनीति एवं दस्तावेज थे।
दोनों नेताओं के गिरफ्तार हो जाने से राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ जी के कन्धों पर उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बंगाल के क्रान्तिकारी सदस्यों का उत्तरदायित्व भी आ गया। बिस्मिल जी ऐसे व्यक्ति थे कि वे या तो किसी काम को हाथ में लेते न थे और यदि एक बार काम हाथ में ले लिया तो उसे पूरा किए बगैर छोड़ते न थे। उस समय पूरे देश में अलग-अलग आंदोलन चल रहे थे वह समय ऐसा था जब हर घर में क्रांतिकारी थे। यह योजना इतनी बड़ी थी कि इसके लिए जर्मनी से 4 माउजर मंगाई गई थी, वो माउजर ऐसी थी कि जिसमें बट लगा देने से वह एक राइफल बन जाती थी. आज जैसा उपयोग ए.के.-47 का है वैसा ही इन माउजरों का था.ये योजना इतनी बड़ी थी कि ये आज भी इतिहास मे काकोरी कांस्प्रेसी नाम से दर्ज है.
क्या हुआ था काकोरी मे-
८ अगस्त को राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के घर पर हुई एक मीटिंग में योजना बनी और अगले दिन ९ अगस्त १९२५ को हरदोई शहर के रेलवे स्टेशन से बिस्मिल के नेतृत्व में कुल १० लोग, जिनमें बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल, बराजेन्द्र लाहिडी, शचीन्द्रनाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती , चन्द्रशेखर आजाद, मन्मथनाथ गुप्त तथा मुकुन्दी लाल शामिल थे; जो ८ सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर रेलगाड़ी में सवार हुए। लखनऊ से पहले काकोरी स्टेशन आते ही राजेंद्र नाथ लहड़ी जी ने चेन खींची और हमारा लूटा हुआ खजाना डब्बे से नीचे फेका..जिस बक्से को चढ़ाने उतारने के लिए दस अंग्रेज सिपाही लगते थे उसे अकेले चंद्रशेखर आजाद और अशफाक उल्ला खाँ ने उठा के नीचे फेंक दिया। उन्होंने साफ कहा कि हम डकैत नहीं क्रांतिकारी हैं हम किसी को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. वहीं ज़ब बक्सा खोलने के लिए अशफाक उल्ला खाँ आए तो उन्होंने अपनी माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दी। मन्मथनाथ गुप्त से जल्दबाजी मे माउजर का ट्रिगर दब गया और उससे निकली गोली मोहम्मदनाम के यात्री को लग गयी।
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कैसे पकड़े गए क्रांतिकारी-
यह योजना इतनी बड़ी थी कि किसी में दम नहीं था इन क्रांतिकारियों को पकड़ने का परंतु पैसों को रखने के लिए लाई गई चादर वहीं छूट गई जिसका पता लगाते लगाते पुलिस राम प्रसाद बिस्मिल जी के सहयोगी तक पहुंच गई और उनसे सब कुछ उगलवा लिया। उसके बाद 40 लोगों की गिरफ्तारी हुई जिसमें से 4 को 5 साल की जेल 5 को 4 साल की जेल और 16 को आजीवन करवास की सजा हुई। गिरफ्तार होने के बाद इन क्रांतिकारी पर झूठा मुकदमा चलाया गया। इन 10 लोगों मे से चंद्रशेखर आजाद को पुलिस नहीं पकड़ पाई, जो बाहर रह अपने ठिकानों से एच०आर०ए०को संचालित कर रहे थे।
इस कांड के दिलचस्प किस्से –
1- इस काकोरी कांड के केस को देखने के लिए स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस के हॉटन को बुलाया गया। उसने सोचा था कि कोई छोटी-मोटी चोरी होगी परंतु जब वह यहां आया तो उसके पसीने छूट गए वह देखता रह गया कि हमारी ही सरकार, हमारी ट्रेन जिसमें सालों से खजाना जा रहा था, कोई कैसे लूट सकता है वह सोचता रह गया कि इतनी खतरनाक रणनीति के साथ कोई कैसे सोच सकता है।
2- जब केस की सुनवाई चली तो पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जी ने सरकारी वकील लेने से मना कर दिया और खुद अपना केस लड़ने लगे। वह इतने पढ़े लिखे थे कि कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक क्रांतिकारी वो भी इतना पढ़ा लिखा। बिस्मिल जी ने ज़ब अंग्रेजी में फैसले के खिलाफ बहस की तो वहां बैठे सभी वकील उन्हें देखते रह गए,
जिसके बाद चीफ जस्टिस को उनसे अंग्रेजी मे ये पूछना पड़ा =- Mr. Ramprasad from which university you have taken the degree of law ?
उनकी बात पर बिस्मिल जी ने शेर की तरह हंसते हुए उत्तर दिया=
Excuse me sir a king maker doesn’t require any degree.
इसके बाद सालों तक यह केस चलता रहा और अंत मे काकोरी काण्ड के चार अमर बलिदानियों पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’,अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्र लाहिडी, ठाकुर रोशनसिंह को 22 अगस्त 1927 को फांसी की सजा सुनाई गई..
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उत्तम विषय का प्रतिपादन
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काकोरी कांड के शहीदों को शत शत नमन
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Bahut Sundar aur gyanvardhak post,Keep it up!
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आपका लेखन बहुत भावनाएँ जगाता है । लिखते रहिए।
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अति उत्तम, सराहनीय लेख।
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अति उत्तम, सराहनीय कार्य।
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🙏🏻🙏🏻 वीरों को नमन
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