नैनीताल: भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का तीन दिवसीय उत्तराखंड दौरा प्रदेश के इतिहास और गौरव से जुड़ा एक यादगार अवसर बनकर उभर रहा है। राष्ट्रपति सचिवालय से मिली जानकारी के अनुसार, द्रौपदी मुर्मू 2 से 4 नवंबर तक उत्तराखंड की राजधानी देहरादून सहित हरिद्वार और नैनीताल जैसे स्थानों का दौरा करेंगी। इस दौरान उनका कार्यक्रम न केवल आधिकारिक रूप से महत्वपूर्ण है बल्कि यह राज्य के सांस्कृतिक, शैक्षणिक और संवैधानिक परिदृश्य से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
दौरे की शुरुआत 2 नवंबर को हरिद्वार से होगी, जहां राष्ट्रपति पतंजलि विश्वविद्यालय के दूसरे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होंगी। बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण द्वारा स्थापित इस विश्वविद्यालय ने आयुर्वेद, योग और भारतीय परंपरा के क्षेत्र में देश और दुनिया में विशिष्ट पहचान बनाई है। दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू विद्यार्थियों को उपाधियाँ प्रदान करेंगी और उन्हें राष्ट्रनिर्माण में योगदान देने की प्रेरणा देंगी। राष्ट्रपति के इस संबोधन से उम्मीद है कि यह युवाओं को भारतीय ज्ञान परंपरा अपनाने और आधुनिक विज्ञान के संग समन्वय बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
हरिद्वार में अपने प्रवास के दौरान राष्ट्रपति पतंजलि योगपीठ परिसर के अन्य कार्यक्रमों में भी शामिल हो सकती हैं, जिससे योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका पर राष्ट्रीय स्तर पर संवाद स्थापित होगा। यह दौरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘स्थानीय से वैश्विक’ के दृष्टिकोण को भी आगे बढ़ाने वाला माना जा रहा है।
3 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देहरादून पहुंचेंगी, जहां उन्हें उत्तराखंड की रजत जयंती के अवसर पर आयोजित विशेष सत्र में राज्य विधानसभा को संबोधित करने का गौरव प्राप्त होगा। वर्ष 2000 में गठित हुआ उत्तराखंड अब अपने अस्तित्व के 25 शानदार वर्ष पूरे कर चुका है। राष्ट्रपति का यह संबोधन राज्य की जनता और जनप्रतिनिधियों के लिए प्रेरणादायक होगा, क्योंकि इसमें संभवतः राज्य की उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर उनके विचार प्रस्तुत होंगे।
इस अवसर पर देहरादून में सुरक्षा और स्वागत की विशेष तैयारियां की गई हैं। विधानसभा भवन को रोशनियों से सजाया जा रहा है, और पूरे शहर में राष्ट्रपति के स्वागत के लिए स्वागत द्वार और बैनर लगाए गए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह राष्ट्रपति का स्वागत करेंगे। उत्तराखंड की संस्कृति, लोकगायन और पारंपरिक वेशभूषा से सजे कार्यक्रम में हिमालयी परंपराओं की झलक देखने को मिलेगी।
यह भी पढ़ें:लालकुआं में युवती को जबरन गाड़ी में बैठाने की कोशिश, राहगीरों ने बचाई जान
देहरादून से राष्ट्रपति मुर्मू नैनीताल जाएंगी, जहां राजभवन की स्थापना के 125 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में वह मुख्य अतिथि होंगी। वर्ष 1890 में बना नैनीताल राजभवन वास्तुशिल्प का एक अद्भुत उदाहरण है। ब्रिटिश काल में निर्मित यह भवन अब राज्यपाल का आधिकारिक निवास है और उत्तराखंड की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक माना जाता है। समारोह में राष्ट्रपति इस भवन के इतिहास, संरक्षण और राज्य की संस्थागत स्मृतियों के महत्व पर अपना संदेश देंगी।
राजभवन समारोह में राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, और अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहेंगे। इस अवसर पर राजभवन के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, चित्रों और पुरानी वास्तुशिल्पीय वस्तुओं की प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी। राष्ट्रपति मुर्मू यहाँ एक स्मारक पट्टिका का अनावरण भी करेंगी, जो इस ऐतिहासिक स्थल के गौरवशाली 125 वर्षों की याद दिलाएगी।
तीन दिवसीय इस प्रवास के दौरान राष्ट्रपति पर्यावरण संरक्षण से जुड़े पहलुओं पर भी चर्चा कर सकती हैं, क्योंकि हिमालयी राज्य के विकास में पर्यावरणीय संतुलन एक प्रमुख चुनौती है। देहरादून और नैनीताल में पर्यावरणविदों और जनप्रतिनिधियों से उनकी मुलाकात निर्धारित मानी जा रही है। राष्ट्रपति का यह प्रवास न केवल सरकारी औपचारिकता रहेगा, बल्कि यह राज्य और केंद्र के बीच सहयोग और विश्वास के नए अध्याय की शुरुआत भी करेगा।
उत्तराखंड जहां एक ओर अपनी भौगोलिक कठिनाइयों से जूझते हुए प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, वहीं इस तरह के उच्चस्तरीय दौरे राज्य की नीतिगत प्राथमिकताओं और विकास योजनाओं में नई ऊर्जा भरते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह दौरा देवभूमि की जनता के लिए गौरव और उत्साह का क्षण है। यह यात्रा राज्य की सांस्कृतिक पहचान, प्राकृतिक सुंदरता और संविधानिक गरिमा — तीनों का संगम प्रस्तुत करेगी।
राष्ट्रपति का उत्तराखंड से जुड़ाव इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह राज्य महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है — वे पहलें जिनसे राष्ट्रपति मुर्मू व्यक्तिगत रूप से हमेशा जुड़ी रही हैं। इसलिए, उनका यह प्रवास केवल एक प्रोटोकॉल नहीं बल्कि एक प्रेरणास्पद संवाद के रूप में देखा जा रहा है, जो उत्तराखंड के आगामी दशक की दिशा तय करने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
