देहरादून: शहर के सरोवर होटल के पास 23 अक्तूबर की शाम हुआ हिट एंड रन हादसा न सिर्फ एक परिवार की खुशियां छीन ले गया, बल्कि सड़क सुरक्षा और लापरवाही पर भी कई सवाल खड़े कर गया। इस हादसे ने आशा सिंह और उनके तीन बच्चों के छोटे से संसार को गहरे दर्द में डुबो दिया है। आशा सिंह की 19 वर्षीय बेटी प्रज्ञा सिंह, जो उत्तरांचल यूनिवर्सिटी में एलएलबी की छात्रा है, फिलहाल दून अस्पताल के आईसीयू में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। हादसे को छह दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन प्रज्ञा अब भी कोमा में है। उसकी मां आशा सिंह दिन-रात अस्पताल के बाहर बैठी हैं, बेटी के स्वस्थ होने की उम्मीद में हर पल ईश्वर से प्रार्थना कर रही हैं।
हादसे की वह शाम
 
पुलिस के अनुसार, 23 अक्तूबर की शाम करीब चार से सवा चार बजे के बीच यह दर्दनाक हादसा हुआ। प्रज्ञा दिल्ली से लौट रही थी और जैसे ही सरोवर होटल के पास पहुंची, एक तेज रफ्तार कार ने उसे जोरदार टक्कर मार दी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि कार चालक मौके से फरार हो गया। घायल अवस्था में राहगीरों ने तुरंत पुलिस को सूचित किया और युवती को नजदीकी अस्पताल पहुंचाया गया। पटेलनगर थानाध्यक्ष चंद्रभान अधिकारी ने बताया कि यह साफ तौर पर हिट एंड रन का मामला है। फिलहाल सीसीटीवी फुटेज खंगाले जा रहे हैं, जिससे वाहन और चालक की पहचान की जा सके। पुलिस टीम ने आसपास के इलाकों में लगे कैमरों की मदद से संदिग्ध गाड़ी की तलाश शुरू कर दी है।
परिवार पर टूटा दुख का पहाड़
 
आशा सिंह, जो एक गृहिणी हैं, अब अपनी बेटी की हालत देखकर टूट चुकी हैं। उन्होंने बताया कि प्रज्ञा हमेशा मेहनती और खुशमिजाज थी, कानून की पढ़ाई के साथ वह समाजसेवा में भी रुचि रखती थी। परिवार वालों के अनुसार, प्रज्ञा का सपना जज बनकर समाज में न्याय की आवाज उठाने का था। मगर अब वह अस्पताल के बेड पर बेहोश पड़ी है और मशीनों पर जिंदगी टिकी है। परिवार की आर्थिक स्थिति भी इस हादसे से चरमरा गई है। इलाज का खर्च हर दिन बढ़ता जा रहा है। स्थानीय लोग और प्रज्ञा के सहपाठी सोशल मीडिया के जरिए मदद के अभियान चला रहे हैं, ताकि इलाज में किसी तरह की बाधा न आए।
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न्याय और जिम्मेदारी की मांग
इस घटना ने एक बार फिर शहर में बढ़ते यातायात और लापरवाह ड्राइविंग पर सवाल खड़े किए हैं। देशभर में हर दिन ऐसी घटनाएं कई परिवारों की दुनिया उजाड़ रही हैं। स्थानीय लोगों ने प्रशासन से मांग की है कि हादसे के आरोपी को जल्द गिरफ्तार किया जाए और सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
उम्मीद की एक किरण
डॉक्टरों का कहना है कि प्रज्ञा की हालत अब भी नाजुक है, पर सुधार की संभावना बनी हुई है। आईसीयू के बाहर बैठी उसकी मां की आंखों में हर दिन वही उम्मीद झलकती है – कि उनकी बेटी एक दिन आंखें खोलेगी, मुस्कुराएगी और पहले की तरह फिर से घर में खुशियां लौटेंगी। यह घटना केवल एक परिवार की पीड़ा नहीं, बल्कि समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि सड़क पर हर लापरवाही किसी की जिंदगी उजाड़ सकती है। प्रज्ञा की कहानी आज शहर में दुआओं और उम्मीद की प्रतीक बन गई है।
 
  
		 
		
 
									 
					

