द्वाराहाट: कला और संस्कृति का सबसे बड़ा मंच माने जाने वाली रामलीला अकसर समाज के भीतर मौजूद सच्चाइयों और समकालीन मुद्दों पर व्यंग्य कसने का माध्यम भी बन जाती है। ऐसा ही नजारा बीती रात द्वाराहाट के कालीखोली में आयोजित रामलीला महोत्सव में देखने को मिला। इस दौरान सीता-स्वयंवर के प्रकरण का मंचन किया गया, लेकिन कलाकारों ने इसे केवल धार्मिक प्रसंग तक सीमित नहीं रखा, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक व्यंग्य से जोड़ दिया। उन्होंने उत्तराखंड में लंबे समय से सुर्खियों में रहे पेपर लीक मामले पर तंज कसते हुए सरकार और भर्ती एजेंसियों को मंच से आईना दिखाया।
मिशन इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित रामलीला के तीसरे दिन मंचन का शुभारंभ गिरीश चौधरी ने किया। जैसे ही सीता स्वयंवर का दृश्य शुरू हुआ, मंच पर राजाओं का आगमन हुआ। परंपरानुसार, इन राजाओं को धनुष तोड़ने का प्रयास करना था, लेकिन जब हर राजा असफल हुआ तो उनके संवादों ने दर्शकों को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया। इस बार कलाकारों ने कथा के बीच समकालीन मुद्दे को पिरोते हुए कहा – “हमारे यहां सब ठीक-ठाक है, पर उत्तराखंड में तो पेपर लीक का मामला चल रहा है।” इस व्यंग्यपूर्ण टिप्पणी ने सभा में मौजूद दर्शकों से खूब तालियां बटोरीं।
खासकर वह क्षण यादगार बन पड़ा, जब कलाकारों ने गाकर तंज कसा – “हाकम मेरो नाम, पेपर चोरी मेरो काम…”। यह गीत सीधे तौर पर पेपर लीक कांड का जिक्र करता रहा। दर्शक हंसते भी रहे और भीतर ही भीतर यह सोचने को मजबूर हुए कि कैसे धार्मिक मंच भी युवाओं के भविष्य छीनने वाले भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने से परहेज़ नहीं कर रहे।
राजाओं की असफलता पर जब मंच पर जनक बने मनोज भाकुनी ने अपनी भूमिका अदा करनी शुरू की, तो वातावरण और रोचक बन गया। उन्होंने गाकर कहा – “सिया रही कुंवारी, टूटे नहीं चाप, क्या आज सारी पृथ्वी क्षत्रिय विहीन हो गई।” यह विलाप परंपरा संग गहराई को दर्शाता रहा, लेकिन समकालीन मुद्दे जोड़ने से इसकी मारकता और अधिक हो गई।
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इस व्यंग्य और कटाक्ष ने यह स्पष्ट कर दिया कि आज की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां केवल धार्मिक भावनाओं को जागृत करने तक सीमित नहीं हैं। वे समाज में हो रही विसंगतियों और अन्याय पर भी सवाल उठाने का माध्यम बन चुकी हैं। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का पेपर लीक कांड राज्य में बेरोजगार युवाओं के लिए दर्दनाक अनुभव रहा है। हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य प्रभावित हुआ है और इसी पीड़ा को मंच पर हास्य-व्यंग्य की शैली में प्रस्तुत कर कलाकारों ने एक गंभीर संदेश भी दिया।
रामलीला के इस सजीव प्रसंग में दर्शकों को न केवल मनोरंजन मिला, बल्कि व्यवस्था पर सवाल उठाने का एक अवसर भी प्रदान हुआ। यह मंचन इस बात का प्रतीक बन गया कि संस्कृति, साहित्य और कला कभी भी समय से पीछे नहीं रहते। वे समाज में घटित हर छोटी-बड़ी घटना को अपने भीतर समेट लेते हैं और उसे व्यंग्य, हास्य और कटाक्ष के जरिए जनता तक पहुंचाते हैं।
द्वाराहाट की रामलीला सदियों से अपनी भव्यता और सामाजिक सहभागिता के लिए जानी जाती रही है। इस बार का मंचन और भी खास रहा क्योंकि उसने दर्शकों को केवल अतीत की एक कथा में ही नहीं बाँधा, बल्कि वर्तमान की सच्चाइयों से भी सीधा सामना कराया।