साल 2025 का दूसरा चंद्रग्रहण 7 अगस्त को पड़ रहा है और संयोग ऐसा है कि इसी तिथि से श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) की शुरुआत भी हो रही है। इस दिन भारत भर के धार्मिक स्थलों, मंदिरों और घरों में विशेष धार्मिक कार्यक्रम और परंपराओं का पालन किया जाएगा। चंद्रग्रहण की स्थिति में सूतक काल लागू होगा, जिससे मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाएंगे और विशेष सावधानियां रखी जाएंगी। वहीं, श्राद्ध पक्ष के साथ पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अनोखा अवसर भी प्रारंभ हो रहा है, जिसमें तर्पण, पिंडदान और दान जैसी परंपराओं का पालन होता है।
यह अवसर धार्मिक आस्था, खगोलीय घटना और परंपराओं का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। आइए आपको बताते हैं हैं कि यह चंद्रग्रहण और श्राद्ध पक्ष किस प्रकार से हमारे जीवन और संस्कृति को जोड़े रखते हैं।
चंद्रग्रहण पर क्या कहता है विज्ञान
चंद्रग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है। इस स्थिति में सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता और चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है। यह पूर्ण, खंडग्रास और उपच्छाया चंद्रग्रहण के रूप में दिखाई दे सकता है। 7 अगस्त को लगने वाला चंद्रग्रहण भारत सहित अनेक देशों में दिखाई देगा और इसके चलते लगभग 12 घंटे का सूतक काल रहेगा। सूतक काल ग्रहण की वास्तविक घटना से 9 घंटे पहले शुरू हो जाता है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार, इस समय धार्मिक अनुष्ठान तो वर्जित रहते ही हैं, साथ ही भोजन और जल तक का स्पर्श करने से बचा जाता है।
धार्मिक मान्यता में चंद्रग्रहण
भारतीय शास्त्रों में ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता। इस समय नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव गहरा माना जाता है। मान्यता है कि चंद्रग्रहण जब लगता है तो इससे प्रकृति और मानव जीवन पर सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं। इसी कारण ग्रहण के समय मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, घरों में भी पूजा-पाठ रोक दी जाती है। ग्रहण के दौरान किया गया जप और ध्यान हालांकि सामान्य समय से कई गुना फलदायी होता है। इसलिए साधक और श्रद्धालु इस समय मंत्रोच्चार और ध्यान में लीन होते हैं।
श्राद्ध पक्ष का महत्व
चंद्रग्रहण के दिन से ही श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष मनाया जाता है। यह एक विशेष अवधि है जब लोग अपने पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और विशेष अनुष्ठान करते हैं। पितृपक्ष का उद्देश्य अपने पूर्वजों का आभार प्रकट करना और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करना है। माना जाता है कि इस अवधि में पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों की श्रद्धा स्वीकार करती हैं। तर्पण और पिंडदान से पितृ प्रसन्न होकर घर-परिवार को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
पितरों के लिए किए जाने वाले अनुष्ठान
- श्राद्ध पक्ष के दौरान हर दिन पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है। इस समय किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान हैं।
- तर्पण: जल, तिल और पुष्पों के साथ पूर्वजों को अर्पण करना।
- पिंडदान: आटे के गोल पिंड या चावल के पिंड बनाकर ब्राह्मण को अर्पित किए जाते हैं।
- दान: जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन, अनाज, कपड़े आदि का दान देना।
- श्राद्ध कर्म: विशेष विधि से पितरों की आत्मा के लिए अनुष्ठान करना।
श्राद्ध पक्ष और ग्रहण का संयोग
इस वर्ष का विशेष संयोग यह है कि श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ चंद्रग्रहण के दिन हो रहा है। धार्मिक दृष्टि से यह समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ग्रहण और श्राद्ध का संगम एक गहन आध्यात्मिक महत्व लिए हुए है। जब लोग ग्रहण के समय जप और ध्यान करते हैं और उसके तुरंत बाद पितरों के लिए तर्पण करते हैं तो कहा जाता है कि उनका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
मंदिरों में व्यवस्था और श्रद्धालुओं की तैयारी
ग्रहण के कारण मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे। ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिरों की विशेष शुद्धि और स्नान कराया जाएगा। उसके बाद ही पुनः पूजा-पाठ शुरू होगा। श्रद्धालु भी घरों में स्नान, शुद्धिकरण और पूजा के लिए तैयार रहेंगे। विशेषकर श्राद्ध पक्ष के पहले दिन पितरों का विधिवत पूजन करके घर में सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत किया जाएगा।
खगोलीय और आध्यात्मिक अनुभव का संगम
यह दिन केवल धार्मिक अनुष्ठान का दिन नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। एक ओर जहां खगोलविद चंद्रग्रहण के दौरान होने वाले अद्भुत आसमानी नज़ारे का अध्ययन करेंगे, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालु पितरों की पूजा में मग्न रहेंगे। इस प्रकार यह दिन धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि का अद्भुत संगम बनकर सामने आएगा।