नशा आज हमारे समाज के लिए एक गंभीर समस्या बन चुकी है। खासकर युवा वर्ग तेजी से इसकी गिरफ्त में आ रहा है, जो न केवल उनके स्वास्थ्य बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र के भविष्य के लिए भी खतरा पैदा करता है। इसी समस्या को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने “ड्रग्स फ़्री (Drugs Free) देवभूमि मिशन-2025” की शुरुआत की है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य राज्य को 2025 तक नशामुक्त बनाना, युवाओं को सही दिशा देना और नशा पीड़ितों के लिए पुनर्वास की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराना है।
नशे की समस्या और उसके कारण
युवाओं के नशे की गिरफ्त में आने के पीछे कई कारण हैं। साथियों का दबाव (Peer Pressure), नए अनुभव की चाह, पढ़ाई और नौकरी का तनाव, पारिवारिक कलह, टूटे रिश्ते और सोशल मीडिया पर दिखाए जा रहे “पार्टी कल्चर” इसके प्रमुख कारण हैं। देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश, हल्द्वानी, पौड़ी और अल्मोड़ा जैसे शहर नशे के प्रमुख हॉटस्पॉट बन चुके हैं। यहां युवा सिगरेट, शराब, गांजा, चरस, ब्राउन शुगर, सिंथेटिक ड्रग्स, कफ सिरप और नशीली दवाओं की गिरफ्त में आ रहे हैं।
नशा न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि पारिवारिक जीवन, शिक्षा, करियर और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। अब बात करते हैं कुछ खास आम नशों की जिसे लोग अकसर इस्तेमाल करते हैं। जिनमें प्रमुख रूप से है सिगरेट व गाँजा।
इसे भी पढ़ें : पर्वतीय गांधी इन्द्रमणि बडोनी: उत्तराखंड राज्य आंदोलन के महानायक का जीवन और संघर्ष
सिगरेट के बड़े खिलाड़ियों को सिगरेट व निकोटिन की लत लगने की जानकारी काफी लंबे समय से है। 60 साल बाद भी ये कंपनियां युवाओं को ध्यान में रख कर नए प्रोडक्ट ला रही है। 1940 के दशक से ही उनका इरादा बदला नहीं है, वो है लोगों को इसकी लत लगाना। WHO इस बात से चिंतित है। पूरे विश्व में 8 करोड़ से ज्यादा लोग आज के समय में ई-सिगरेट पी रहे हैं और 2 लाख बच्चे भी ये पी रहे हैं। आज के युवा अपनी पॉकेट मनी का एक बड़ा हिस्सा नशे में खर्च कर रहे हैं। इन सभी चीजों में विज्ञापनों की भी अहम भूमिका है। जिसमें इच्छा, बुद्धि पर हावी हो जाती है। बाजार में इन नशों का आसानी से उपलब्ध होना यह दूसरा बड़ा कारण है।
एक और नशा है जिससे युवा बहुत प्रभावित हैं, वो है गाँजा। 13-15 साल से ही गाँजे का सेवन करने वाले लोगों को यह उनके दिमाग के अगले भाग पर बुरा असर डालता है, जो हमारी भावनाओं के लिए निर्भर है। हर साल मानसिक बीमारियों से जूझते लोगों के लिए यह नशा एक खास कारण बन गया है। इससे पैनिक अटैक की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
नशा मुक्त उत्तराखंड अभियान की पहलें
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चल रहा “ड्रग्स फ़्री (Drugs Free) देवभूमि मिशन-2025” नशे के खिलाफ व्यापक अभियान है। इसके अंतर्गत “ऑपरेशन क्लीन” चलाकर नकली और अवैध दवाओं पर सख्त कार्रवाई की जा रही है। अब तक इस अभियान में 591 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं और 24.25 करोड़ रुपये मूल्य की नशीली दवाओं की जब्ती की जा चुकी है।
इसे भी पढ़ें :- तंबाकू छोड़ें, जीवन बचाएं: World No Tobacco Day 2025 की पूरी जानकारी!
साथ ही, स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, निबंध प्रतियोगिता और काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जा रहे हैं।1933 हेल्पलाइन नंबर भारत सरकार की “नशा मुक्त (Drugs Free) भारत अभियान” के तहत शुरू की गई राष्ट्रीय ड्रग्स डी-एडिक्शन हेल्पलाइन है। यह हेल्पलाइन उन लोगों के लिए है जो नशे की लत, ड्रग्स, शराब, तंबाकू या किसी भी तरह के व्यसन से जूझ रहे हैं।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) की भूमिका
नशा मुक्त उत्तराखंड अभियान में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। DLSA द्वारा स्कूलों, कॉलेजों और ग्राम पंचायतों में जागरूकता शिविर लगाए जाते हैं, ताकि युवाओं को नशे के दुष्प्रभाव और कानूनी प्रावधानों की जानकारी मिल सके। नशा पीड़ितों और उनके परिवारों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है।
इसके साथ ही, DLSA स्वास्थ्य विभाग और नशा मुक्ति केंद्रों के साथ मिलकर काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक परामर्श और पुनर्वास की सुविधाएं भी उपलब्ध कराता है। कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति नशा मुक्त (Drugs Free) हेल्पलाइन नंबर 15100 पर कॉल करके त्वरित कानूनी व मानसिक सहायता प्राप्त कर सकता है।
अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में नया नशा मुक्ति केंद्र
उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज (बेस अस्पताल) में एक नया 30-बेड वाला नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र स्थापित किया है। इसका उद्घाटन 4 अगस्त 2025 को किया गया। यह केंद्र संकल्प नशा मुक्त (Drugs Free) देवभूमि ट्रस्ट द्वारा संचालित है और इसमें 24×7 परामर्शदाता, मनोवैज्ञानिक और प्रशिक्षित स्टाफ की सेवाएं उपलब्ध हैं। यहाँ नशा पीड़ितों को मुफ्त उपचार, परामर्श, दवाइयाँ और भोजन प्रदान किया जाता है।
भर्ती के लिए केवल आधार कार्ड, राशन कार्ड और अभिभावक की पहचान आवश्यक है। इस केंद्र की स्थापना से कुमाऊं क्षेत्र के युवाओं को नशा मुक्ति के लिए बेहतर सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। राज्य में केवल 4 अन्य मान्यता प्राप्त नशा मुक्ति केंद्र संचालित हैं, जो सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से मान्यता प्राप्त और समाज कल्याण विभाग में पंजीकृत हैं। इनमें से एक हल्द्वानी, दो पिथौरागढ़, और एक हरिद्वार में स्थित हैं।
नशा मुक्त उत्तराखंड अभियान, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सक्रिय भागीदारी और अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज में नए नशा मुक्ति केंद्र की स्थापना मिलकर युवाओं को नशे की गिरफ्त से बाहर निकालने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि समाज, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और कानूनी संस्थाएं इसी तरह समन्वय के साथ कार्य करती रहीं, तो 2025 तक उत्तराखंड को “ड्रग्स फ़्री (Drugs Free) देवभूमि” बनाने का सपना अवश्य साकार होगा।