तीन लोगों के DNA से जन्में बच्चे: वैज्ञानिक सफलता या सवालों की शुरुआत?
ब्रिटेन में हाल ही में एक ऐसा वैज्ञानिक चमत्कार सामने आया है जिसे चिकित्सा जगत में बड़ी सफलता माना जा रहा है। एक दशक पहले ब्रिटेन ने माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन तकनीक को वैध घोषित कर इतिहास रच दिया था। अब, 10 साल बाद, इस तकनीक से जन्में पहले 8 बच्चों के परिणाम सामने आए हैं—सभी बच्चे अभी तक स्वस्थ हैं। यह तकनीक उन महिलाओं के लिए लाई गई थी जो अपने बच्चों को लाइलाज आनुवंशिक बीमारियाँ दे सकती थीं।
यह तकनीक तीन लोगों के DNA से एक बच्चा पैदा करने की अनुमति देती है – माता-पिता के साथ-साथ एक महिला डोनर से लिया गया माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए।
तकनीक क्या है?
इस उपचार में तीन लोगों के डीएनए का प्रयोग होता है—माँ और पिता से न्यूक्लियर डीएनए और एक डोनर महिला से स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए लिया जाता है ।
इस तकनीक का उद्देश्य उन गंभीर अनुवांशिक बीमारियों को रोकना है जो माइटोकॉन्ड्रिया (कोशिकाओं की ऊर्जा यूनिट) में दोष के कारण होती हैं। इसमें माता-पिता के न्यूक्लियर डीएनए के साथ, एक स्वस्थ महिला डोनर का माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए मिलाया जाता है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से Leigh Syndrome जैसी घातक बीमारियों को टालने के लिए तैयार की गई थी।
क्यों है यह एक बड़ी खबर?
- यह तकनीक जेनेटिक बीमारियों की रोकथाम में एक नई क्रांति ला सकती है।
- आठ स्वस्थ बच्चों का जन्म वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
- यह भारत सहित कई देशों के लिए नई राह दिखा सकता है, जहाँ अनुवांशिक रोग एक बड़ा स्वास्थ्य मुद्दा हैं।
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लेकिन उठते हैं कई सवाल
1. इतनी देरी क्यों हुई जानकारी साझा करने में?
एक चिंता यह है कि इन परिणामों को सार्वजनिक करने में लगभग एक दशक लग गया, जबकि यह तकनीक सरकारी फंड से विकसित की गई थी। सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शिता जरूरी है – विशेषकर जब बात जीवन से जुड़ी संवेदनशील तकनीकों की हो।
2. केवल 8 बच्चे—क्या यह डेटा काफी है?
हालांकि 8 बच्चों का जन्म एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन सवाल यह है कि तकनीक की क्षमता को लेकर जो वादे किए गए थे, क्या वे पूरे हुए? अनुमान था कि हर साल 150 बच्चे इस तकनीक से जन्म ले सकते हैं, पर अब तक सिर्फ 22 महिलाओं को यह प्रक्रिया दी गई और उनमें से 8 ही सफल रहीं। क्या इतने छोटे आंकड़ों के आधार पर हम इसे “सफलता” कह सकते हैं?
3. क्या यह तकनीक पूरी तरह सुरक्षित है?
इन सफल जन्मों में से 2 बच्चों में माँ के दोषपूर्ण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए का पुनः उभरना पाया गया है, जिससे यह खतरा बना हुआ है कि वे बीमारियाँ भविष्य में फिर से दिखाई दे सकती हैं। वैज्ञानिकों ने अब यह स्वीकार किया है कि यह तकनीक बीमारी को पूरी तरह रोक नहीं सकती, सिर्फ उसका जोखिम कम कर सकती है। इससे यह तकनीक अब बीमारी को “रोकने” के बजाय केवल “जोखिम कम करने” तक सीमित रह गई है।
4. मरीजों का अनुभव कैसा रहा?
32 महिलाओं को तकनीक के लिए मंजूरी मिली, लेकिन सिर्फ 22 ने इसे अपनाया। क्यों? इसका कोई स्पष्ट उत्तर अब तक नहीं दिया गया है।
आगे का रास्ता
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक को उन महिलाओं पर भी आजमाया जाना चाहिए जो सिर्फ बांझपन से जूझ रही हैं, ताकि इसके दीर्घकालिक प्रभाव बेहतर समझे जा सकें।
निष्कर्ष
तीन डीएनए वाले इन बच्चों का जन्म विज्ञान के लिए आशा की एक नई किरण है। लेकिन इसके साथ ही यह हमें सावधानी और पारदर्शिता की आवश्यकता का भी अहसास कराता है। वैज्ञानिक तरक्की जितनी जरूरी है, उतना ही जरूरी है उन परिवारों की उम्मीदों और भावनाओं का सम्मान जो इस तकनीक से जुड़ी हैं।
ब्रेकथ्रू ज़िम्मेदारी के साथ आते हैं। यदि ब्रिटेन इस क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका बनाए रखना चाहता है, तो उसे न केवल सफलता बल्कि सीमाओं को भी पूरी ईमानदारी से सामने लाना होगा।
न्यूज़ सोर्स :-theconversation.com