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साइबर अपराध क्या है? जानें प्रकार, सजा और बचाव के उपाय

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साइबर अपराध (Cyber Crime) क्या है?

साइबर अपराध उन गैर-कानूनी गतिविधियों को कहते हैं जो कंप्यूटर, इंटरनेट, नेटवर्किंग डिवाइस या डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके की जाती हैं। इसमें किसी व्यक्ति, संगठन या सरकार को नुकसान पहुँचाने या धोखा देने के उद्देश्य से किया गया अपराध शामिल होता है।

साइबर अपराध क्या है? जानें प्रकार, सजा और बचाव के उपाय

साइबर अपराध के प्रकार

  1. हैकिंग (Hacking) – किसी अन्य व्यक्ति या संस्था के कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क या डेटा तक बिना अनुमति पहुंच प्राप्त करना।
  2. फिशिंग (Phishing) – नकली ईमेल या वेबसाइट के माध्यम से लोगों की निजी जानकारी, जैसे बैंक डिटेल्स और पासवर्ड, चुराने की प्रक्रिया।
  3. डाटा चोरी (Data Theft) – व्यक्तिगत या व्यावसायिक डेटा को चोरी करके गलत उपयोग करना।
  4. वायरस और मालवेयर हमले (Virus & Malware Attacks) – कंप्यूटर सिस्टम को संक्रमित करके डेटा को नुकसान पहुँचाना या चोरी करना।
  5. साइबर ठगी (Online Fraud) – ऑनलाइन पेमेंट गेटवे, बैंकिंग या डिजिटल ट्रांजेक्शन में धोखाधड़ी।
  6. आईटी एक्ट का उल्लंघन (Violation of IT Act) – भारत के आईटी कानूनों के विरुद्ध जाकर डिजिटल प्लेटफार्म का दुरुपयोग।
  7. सोशल मीडिया अपराध (Social Media Crime) – फेक प्रोफाइल बनाकर किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना, ट्रोलिंग, ब्लैकमेलिंग आदि।
  8. डार्क वेब गतिविधियाँ (Dark Web Activities) – अवैध हथियार, ड्रग्स, मानव तस्करी और अन्य गैर-कानूनी गतिविधियाँ।

साइबर अपराध से बचाव के उपाय

✔ मजबूत पासवर्ड का उपयोग करें और समय-समय पर बदलें।
✔ अनजान ईमेल या लिंक पर क्लिक करने से बचें।
✔ सोशल मीडिया पर अपनी निजी जानकारी कम से कम साझा करें।
✔ एंटी-वायरस और फ़ायरवॉल का उपयोग करें।
✔ ऑनलाइन पेमेंट और बैंकिंग करते समय सुरक्षित नेटवर्क का उपयोग करें।
✔ संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत साइबर पुलिस या सरकारी हेल्पलाइन पर दें।

भारत में साइबर अपराध से निपटने के लिए आईटी अधिनियम, 2000 लागू किया गया है, जिसमें साइबर अपराधियों के लिए सख्त दंड का प्रावधान है। यदि आपको साइबर अपराध की शिकायत करनी हो, तो आप www.cybercrime.gov.in पर रिपोर्ट दर्ज कर सकते हैं।

भारत में आईटी अधिनियम, 2000 के तहत सजा के प्रावधान

भारत में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) के तहत विभिन्न साइबर अपराधों के लिए सजा और दंड का प्रावधान किया गया है। इस अधिनियम को 2008 में संशोधित किया गया, जिससे इसमें और सख्ती आई।

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मुख्य धाराएँ और उनके तहत सजा

धारा अपराध सजा
धारा 43 किसी व्यक्ति के कंप्यूटर, नेटवर्क या डिवाइस को उसकी अनुमति के बिना एक्सेस करना, डेटा चोरी करना, वायरस डालना, सेवाओं में बाधा डालना। नुकसान की भरपाई और आर्थिक दंड।
धारा 66 हैकिंग (किसी कंप्यूटर सिस्टम में अनधिकृत रूप से प्रवेश करना और डेटा को नुकसान पहुंचाना)। 3 साल तक की कैद या ₹5 लाख तक का जुर्माना या दोनों।
धारा 66B चोरी किए गए कंप्यूटर संसाधन या डिवाइस का उपयोग करना। 3 साल तक की कैद या ₹1 लाख तक का जुर्माना या दोनों।
धारा 66C किसी अन्य व्यक्ति की डिजिटल पहचान (पासवर्ड, डिजिटल सिग्नेचर, आदि) चुराना या उसका दुरुपयोग करना। 3 साल तक की कैद और ₹1 लाख तक का जुर्माना।
धारा 66D फ़िशिंग (फर्जी पहचान का उपयोग करके ऑनलाइन धोखाधड़ी करना)। 3 साल तक की कैद और ₹1 लाख तक का जुर्माना।
धारा 66E किसी की अनुमति के बिना उसकी निजी तस्वीरें या जानकारी साझा करना (Privacy Violation)। 3 साल तक की कैद और ₹2 लाख तक का जुर्माना।
धारा 67 इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अश्लील सामग्री प्रसारित करना। पहली बार – 3 साल तक की कैद और ₹5 लाख तक का जुर्माना। दूसरी बार – 5 साल तक की कैद और ₹10 लाख तक का जुर्माना।
धारा 67A इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से यौन रूप से आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना। पहली बार – 5 साल तक की कैद और ₹10 लाख तक का जुर्माना। दूसरी बार – 7 साल तक की कैद और ₹10 लाख तक का जुर्माना।
धारा 67B बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री (Child Pornography) बनाना, देखना, प्रसारित करना। पहली बार – 5 साल तक की कैद और ₹10 लाख तक का जुर्माना। दूसरी बार – 7 साल तक की कैद और ₹10 लाख तक का जुर्माना।
धारा 69 सरकार की अनुमति के बिना साइबर स्पेस में गतिविधियाँ करना, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो। 7 साल तक की कैद और जुर्माना।
धारा 70 सरकारी कंप्यूटर संसाधनों (Critical Information Infrastructure) में अनधिकृत हस्तक्षेप करना। 10 साल तक की कैद और जुर्माना।
धारा 72 सरकारी अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति की निजी जानकारी को सार्वजनिक करना। 2 साल तक की कैद या ₹1 लाख तक का जुर्माना या दोनों।
धारा 73 डिजिटल सर्टिफिकेट या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का धोखाधड़ीपूर्ण उपयोग। 2 साल तक की कैद और ₹1 लाख तक का जुर्माना।

 

आईटी अधिनियम 2000 में साइबर अपराधों के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। यदि कोई साइबर अपराध का शिकार होता है, तो वह राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर शिकायत दर्ज करा सकता है या साइबर पुलिस स्टेशन में जाकर एफआईआर दर्ज करा सकता है।

आजकल देशभर में साइबर क्राइम तेजी से बढ़ता जा रहा है । साइबर धोखाधड़ी के लिए डिजिटल अरेस्ट का हवाला दिया जा रहा है। साथ ही करोड़ों रुपयों का चूना लगाया जा रहा है । इस गेम से देशवासियों को आगाह किया जा रहा है।

डिजिटल अरेस्ट क्या है? डिजिटल अरेस्ट की पहचान और इससे बचने के लिए क्या करें?

डिजिटल अरेस्ट एक साइबर स्कैम है। डिजिटल अरेस्ट स्कैम में फोन करने वाली टीम, कभी पुलिस, सीबीआई नारकोटिक्स सीबीआई और दिल्ली या मुंबई लोकल पुलिस स्टेशन का विश्वास दिला कर आदमी से बात करते हैं। व्हाट्सएप या स्काईप कॉल पर जब कनेक्ट करते हैं तो आपको फर्जी अधिकारी भी असली से लगते हैं वे पीड़ित को इमोशनली और मेंटली टॉर्चर करते हैं, यकीन दिलाते हैं कि उनके या उनके परिजन के साथ कुछ बुरा हो चुका है या होने वाला है। सामने बैठा व्यक्ति पुलिस की वर्दी में होता है

डिजिटल अरेस्ट

ऐसे में ज्यादातर लोग डर जाते हैं और उनके जाल में फंसते चले जाते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो डिजिटल अरेस्ट में फर्जी सरकारी अधिकारी बनकर वीडियो कॉल के माध्यम से लोगों को डरा धमका कर उनसे बड़ी रकम वसूली करते हैं। डिजिटल अरेस्ट का खेल कैसे खेला जाता है; किसी में फंसने या परिजन का किसी मामले में पकड़े जाने, धमकी देकर कॉल पर बने रहने के लिए मजबूर किया जाता है ई-कॉमर्स मनी लॉन्ड्रिंग धंधा या अन्य व्यक्तियों का आरोप लगाते हैं पीड़ित को किसी को कुछ ना बताने की धमकी दी जाती है।  वीडियो कॉल करने वाले के बैकग्राउंड में पुलिस स्टेशन जैसा नजर आता है। गिरफ्तारी से बचने के लिए मोटी रकम की मांग की जाती है।

डिजिटल अरेस्ट को कैसे पहचाने?

आपके पास अनजान नंबर से कॉल या मैसेज आए तो रिसीव ना करें।  पुलिस अधिकारी अपनी पहचान बताने के लिए वीडियो कॉल नहीं करेंगे।  पहचान पत्र, एफ.आई.आर की कॉपी और गिरफ्तारी वारंट ऑनलाइन नहीं दिखाया जाएगा।  पुलिस अधिकारी कभी भी वॉइस या वीडियो कॉल पर बयान दर्ज नहीं करते हैं। पुलिस कॉल के दौरान अन्य लोगों से बात करने से नहीं रोकती है।

कानून में डिजिटल अरेस्ट का कोई प्रावधान नहीं है डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचे सतर्क रहें सुरक्षित रहें कोई भी सरकारी जांच एजेंसी आधिकारिक संचार के लिए व्हाट्सएप या स्काइप जैसे प्लेटफार्म का उपयोग नहीं करती। अनजान नंबरों से आए सामान्य और वीडियो कॉल पर भी कोई निजी जानकारी ना दें। साक्ष्य जुटाएँ , कॉल के स्क्रीनशॉट या वीडियो रिकॉर्डिंग करें ताकि आवश्यक होने पर उपयोग कर सके।

क्या भारतीय कानून में “डिजिटल अरेस्ट” का कोई प्रावधान है?

भारतीय कानून में “डिजिटल अरेस्ट” नाम से कोई विशेष कानूनी संकल्पना या परिभाषा मौजूद नहीं है। लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत कुछ साइबर अपराधों के लिए गिरफ्तारी का प्रावधान है।

हालांकि, साइबर अपराधों में अभियुक्तों को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया पारंपरिक आपराधिक गिरफ्तारी से अलग हो सकती है। इसे साइबर अपराध में गिरफ्तारी (Cyber Crime Arrest) या डिजिटल अपराधों के लिए गिरफ्तारी कहा जा सकता है, लेकिन इसे भारतीय कानूनों में “डिजिटल अरेस्ट” के रूप में औपचारिक रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।

साइबर अपराधों के लिए गिरफ्तारी से जुड़े कानूनी प्रावधान

  • आईटी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) के तहत गिरफ्तारी
    • धारा 66 (हैकिंग)
    • धारा 66C (डिजिटल पहचान की चोरी)
    • धारा 66D (ऑनलाइन धोखाधड़ी)
    • धारा 67A & 67B (अश्लील सामग्री और चाइल्ड पोर्नोग्राफी का प्रसार)
    • धारा 69 (राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित साइबर अपराध)
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गिरफ्तारी
    • धारा 419 (पहचान की धोखाधड़ी)
    • धारा 420 (धोखाधड़ी)
    • धारा 499 और 500 (मानहानि)
    • धारा 505 (अफवाहें फैलाना)
  • गिरफ्तारी की प्रक्रिया
    ✔ साइबर पुलिस द्वारा प्राथमिक जांच की जाती है।
    ✔ आरोपी के खिलाफ पर्याप्त डिजिटल साक्ष्य मिलने के बाद एफआईआर दर्ज की जाती है।
    ✔ यदि अपराध संज्ञेय (Cognizable) है, तो पुलिस बिना वारंट के भी गिरफ्तार कर सकती है।
    ✔ कोर्ट में पेशी के बाद जमानत या अन्य कानूनी कार्यवाही होती है।
  • “डिजिटल अरेस्ट” भारतीय कानून में कोई आधिकारिक कानूनी शब्द नहीं है।
  •  लेकिन साइबर अपराधों के लिए गिरफ्तारी का प्रावधान IT Act और IPC के तहत मौजूद है।

✔ यदि कोई व्यक्ति साइबर अपराध में संलिप्त पाया जाता है, तो उसे सामान्य गिरफ्तारी प्रक्रिया के तहत ही हिरासत में लिया जा सकता है।
✔ यदि किसी को गलत तरीके से गिरफ्तार किया जाता है, तो वह विभिन्न कानूनी मंचों में याचिका दाखिल कर सकता है और जमानत की मांग कर सकता है।

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