क्या आपको भी पहाड़ों में जाकर एक अलग ही सुकून मिलता है?
वो ठंडी हवा जो चेहरे को छूती है, दूर तक फैली खामोशी और बादलों से बातें करती चोटियां… हम सबने कभी न कभी ये महसूस किया है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिन पहाड़ों पर हम अपनी छुट्टियों में ‘सुकून’ ढूंढने जाते हैं, वो असल में दुनिया को ‘ज़िंदगी’ दे रहे हैं?
आज 11 दिसंबर है, यानी अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस (International Mountain Day)। आज का दिन सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि एक रिमाइंडर है कि अगर पहाड़ नहीं रहे, तो शायद हम भी नहीं रहेंगे। आइए, आज इन ऊंचे पहाड़ों की कहानी को थोड़ा करीब से जानते हैं।
इतिहास : इसकी शुरुआत कैसे हुई?
ऐसा नहीं है कि किसी ने अचानक उठकर आज के दिन को ‘माउंटेन डे‘ घोषित कर दिया। इसके पीछे एक लंबी जर्नी है। इसकी नींव 1992 में पड़ी थी, जब संयुक्त राष्ट्र (UN) ने ‘एजेंडा 21’ में पहाड़ों के महत्व को पहली बार इतनी गंभीरता से समझा। दुनिया को यह एहसास हुआ कि पहाड़ सिर्फ पत्थर के ढेर नहीं, बल्कि एक नाजुक इकोसिस्टम हैं।
इस जागरूकता को बढ़ाने के लिए UN ने साल 2002 को ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वत वर्ष ‘ (International Year of Mountains) घोषित किया। इस पहल को इतना जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला कि अगले ही साल, यानी 2003 से हर साल 11 दिसंबर को आधिकारिक तौर पर ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस‘ मनाया जाने लगा। तब से लेकर आज तक, यह दिन हमें याद दिलाता है कि पहाड़ हैं तो पानी है, और पानी है तो जीवन है।
2025 की थीम: क्यों खास है इस बार?
हर साल इस दिन की एक थीम होती है। 2025 की थीम बेहद गंभीर और जरूरी है: “Glaciers matter for water, food and livelihoods” (ग्लेशियर: पानी, भोजन और आजीविका के लिए मायने रखते हैं)।
हम सब जानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर कितनी तेजी से पिघल रहे हैं। अगर आप सोच रहे हैं कि “अरे, ग्लेशियर तो दूर हिमालय में हैं, मुझे क्या फर्क पड़ता है?“, तो रुकिए। दुनिया का 70% ताज़ा पानी (Freshwater) इन्हीं पहाड़ों और ग्लेशियर्स में जमा है। जो नदियां हमारे खेतों को सींचती हैं और हमारे घरों तक पानी लाती हैं, उनका स्रोत यही ‘बर्फ के पहाड़’ हैं।

2025 में इस मुद्दे पर बात करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि हम ‘नो रिटर्न’ वाले पॉइंट के करीब हैं।
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पहाड़ सिर्फ टूरिस्ट स्पॉट नहीं, जीवन रेखा हैं
हममें से ज्यादातर लोग पहाड़ों को सिर्फ मैगी खाने और फोटो खिंचवाने की जगह समझते हैं। लेकिन हकीकत यह है:
- पानी के टावर: दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी अपनी प्यास बुझाने के लिए पहाड़ों से आने वाले पानी पर निर्भर है।
- जैव विविधता (Biodiversity): पहाड़ दुनिया के सबसे दुर्लभ जानवरों और पौधों का घर हैं। हिम तेंदुआ (Snow Leopard) से लेकर दुर्लभ जड़ी-बूटियों तक, सब यहीं बसते हैं।
- संस्कृति और लोग: पहाड़ों में रहने वाले समुदायों का जीवन संघर्षपूर्ण लेकिन प्रकृति के सबसे करीब होता है। उनकी संस्कृति, परंपरा और ज्ञान को बचाना भी इस दिन का मकसद है।
आज हम क्या कर सकते हैं?
मुझे लगता है कि सिर्फ़ “हैप्पी माउंटेन डे” का स्टेटस लगाना काफी नहीं है। हमें थोड़ा जिम्मेदार बनना होगा:
- Leave No Trace: अगली बार जब आप मनाली, कसोल या केदारनाथ जाएं, तो अपना कचरा (खासकर प्लास्टिक) वापस अपने साथ लाएं। पहाड़ों के पास कचरा प्रोसेस करने की मशीनें नहीं हैं।
- लोकल को सपोर्ट करें: पहाड़ों पर जाएं तो बड़ी विदेशी ब्रांड्स की जगह स्थानीय लोगों के होमस्टे में रुकें और उनका बनाया खाना खाएं। इससे उनकी आजीविका (Livelihood) को मदद मिलेगी।
- जागरूक बनें: आज के दिन कम से कम एक व्यक्ति को यह बताएं कि ग्लेशियर क्यों जरूरी हैं।
निष्कर्ष
पहाड़ हमें सिखाते हैं कि ठहराव में भी कितनी ताकत होती है। आज, अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस पर, चलिए एक वादा करते हैं—अगली बार जब हम पहाड़ जाएंगे, तो सिर्फ यादें लेकर आएंगे, वहां अपने कचरा को छोड़कर नहीं आएंगे।
पहाड़ बुला रहे हैं, लेकिन क्या हम उनकी खामोश पुकार सुन पा रहे हैं?
