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गगन गिल को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार: एकांत और मर्म की कविता की अद्भुत आवाज़

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गगन गिल को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार
गगन गिल को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार

18 दिसम्बर को साहित्य अकादमी ने 21 भाषाओं के रचनाकारों को वर्ष 2023-24 का, प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की है। जिसमें हिन्दी के लिए प्रख्यात कवयित्री “गगन गिल” को उनके कविता संग्रह ‘मैं जब तक आई बाहर’ के साहित्य अकादमी पुरस्कार देने का ऐलान किया है।

कौन है गगन गिल (gagan gill)? –

सुपरिचित कवयित्री गगन गिल का जन्म 19 नवंबर 1959 को नई दिल्ली में हुआ। 1983 में प्रकाशित उनके पहले काव्य-संग्रह ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ और 1984 में भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से वह चर्चा में आईं।
उन्हें (1984) मे ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार ’ , (1989) मे ‘संस्कृति सम्मान’ (2000) मे ‘केदार सम्मान’, (2008) मे ‘हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान’ और (2010) मे ‘द्विजदेव सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।

गगन गिल की कृतियाँ

अभी तक उनकी 9 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें 1989 मे ‘एक दिन लौटेगी लड़की’, 1996 मे ‘अँधेरे में बुद्ध’, 1998 मे ‘यह आकांक्षा समय नहीं’, 2003मे ‘थपक थपक दिल थपक थपक’, 2018 मे ‘मैं जब तक आई बाहर’ उनके पाँच काव्य-संग्रह हैं।

दिल्ली में उनींदे (2000), अवाक् (2008), देह की मुँडेर पर (2018) और इत्यादि (2018) ये तीनों उनकी गद्य-कृतियाँ हैं।

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साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत वह अद्भुत कविता “मैं जब तक आई बाहर”-

मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने
बदल चुका था

रंग दुनिया का
अर्थ भाषा का
मंत्र और जप का
ध्यान और प्रार्थना का

कोई बंद कर गया था

बाहर से
देवताओं की कोठरियाँ
अब वे खुलने में न आती थीं
ताले पड़े थे तमाम शहर के

दिलों पर
होंठों पर

आँखें ढँक चुकी थीं
नामालूम झिल्लियों से

सुनाई कुछ पड़ता न था
मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने
रंग हो चुका था लाल

आसमान का
यह कोई युद्ध का मैदान था

चले जा रही थी
जिसमें मैं

लाल रोशनी में
शाम में

मैं इतनी देर में आई बाहर
कि योद्धा हो चुके थे

अदृश्य
शहीद

युद्ध भी हो चुका था
अदृश्य

हालाँकि
लड़ा जा रहा था

अब भी
सब ओर

कहाँ पड़ रहा था
मेरा पैर

चीख़ आती थी
किधर से

पता कुछ चलता न था
मैं जब तक आई बाहर

ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ
न कहीं पट्टी

न मरहम
सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था

वही अब तक याद था
किसी ने मुझे

वह दिया न था
मैंने ख़ुद ही

खोज निकाला था उसे
एक दिन

अपने कंठ की गूँ-गूँ में से
चाहिए थी बस मुझे

तिनका भर कुशा
जुड़े हुए मेरे हाथ

ध्यान प्रार्थना

सर्वम शांति के लिए
मंत्र का अर्थ मगर अब

वही न था
मंत्र किसी काम का न था

मैं जब तक आई बाहर
एकांत से अपने

बदल चुका था मर्म
भाषा का।

साहित्य अकादमी पुरस्कार समारोह

साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवास राव ने कहा कि इन सभी रचनाकारों को अगले साल आठ मार्च को आयोजित एक समारोह में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, जिसमें एक लाख रुपये की राशि, एक उत्कीर्ण ताम्रफलक और शॉल शामिल है।

हम सभी हिंदी साहित्य के पाठकों और कविताओं मे रूचि रखने वालों की ओर से गगन गिल जी को इस प्रतिष्ठित सम्मान के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ

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