सुरेश उपाध्याय नई दिल्ली : पिछले साल तिरुपति मंदिर में प्रसाद के लड्डू बनाने में पशुओं की चर्बी मिले घी के इस्तेमाल का मामला सामने आया था। मामला आस्था का था, तो इस पर काफी विवाद हुआ था और पूरे देश में खाद्य सुरक्षा पर खासी बहस हुई थी। तब लग रहा था कि खाद्य सुरक्षा को केंद्र और राज्य सरकारें संजीदगी से लेंगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
अब भी देश के तमाम बाजारों में नकली घटिया और प्रदूषित फूड आइटम्स धड़ल्ले से बिक रहे हैं। दूरदराज के इलाकों में तो नकली और घटिया किस्म के खाद्य पदार्थों की बिक्री धड़ल्ले से होती है।
भारत दुनिया के उन इक्का-दुक्का देशों में से एक होगा, जहां फूड सेफ्टी का कोई मतलब ही नहीं है। कहने को तो फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने खाद्य पदार्थों की सेफ्टी के लिए बहुत से नियम बना रखे हैं, लेकिन उन पर नाममात्र का अमल होता है, वह भी त्योहारों के मौके पर। बाकी समय देश के बाजारों में क्या बिक रहा है, इस पर कोई नजर आमतौर पर नहीं रखी जाती।
सब्ज़ियों-फलों में मिल रहा ज़हर
गौरतलब है कि सब्जियों और फलों से साथ ही तमाम तरह के खाद्य पदार्थों में मिलावट और कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल की खबरें साल भर आती रहती हैं, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई भी राज्य सरकार ठोस कदम नहीं उठाती।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, दिल्ली में यमुना के किनारे उगाई जाने वाली सब्जियों में लेड, पारा, आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्वों की मौजूदगी के बारे में कई बार आगाह कर चुका है, लेकिन यहां अब भी सब्जियां उगाई जा रही हैं और दिल्ली और आसपास के लोग उन्हें खा भी रहे हैं।
कीटनाशक बन रहे हमारी थाली का हिस्सा
पूरी दुनिया में अनाज, फलों और सब्जियों को कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग होता है, लेकिन एक तय सीमा के अंदर। भारत में भी इसके मानक तय हैं, लेकिन किसी भी राज्य में शायद ही इनका पालन किया जाता होगा।
यही वजह है कि कभी विदेश में भारत की बासमती और मसालों तो कभी किसी और उत्पाद में कीटनाशकों की ज्यादा मात्रा पाई जाती है और उनके आयात पर रोक लग जाती है। कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल का पता विदेशों में खाद्य सुरक्षा के कड़े मानकों और टेस्ट के कारण चलता है।अपने देश में हालात इसके ठीक विपरीत हैं।
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देश के ज्यादातर राज्यों में किसानों को यह पता ही नहीं है कि उन्हें किस फसल में कितनी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करना है। सब्जियों और अनाज के साथ ही फलों में भी भारी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। ये कीटनाशक हमारी फूड चेन का हिस्सा बन रहे हैं। भारत में अब भी ऐसे कई कीटनाशकों का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है, जिन्हें छोटे से छोटे देश तक बैन कर चुके हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि कई कीटनाशक देश में कैंसर के बढ़ते मामलों की वजह हैं। कैंसर के केस ऐसे लोगों में भी देखने में आ रहे हैं किसी तरह का नशा नहीं करते या ऐसे पदार्थों का सेवन नहीं करते जो कैंसर पैदा कर सकते हैं। कई विशेषज्ञ डायबिटीज और दिल के रोगों के बढ़ने का एक कारण शरीर में जा रहे कीटनाशकों को मानते हैं। इसके साथ ही फल, सब्जियों को रातों रात बड़ा करने और पालतू पशुओं से ज्यादा दूध हासिल करने के लिए प्रतिबंधित हॉर्मोन्स का प्रयोग किया जाता है और कोई देखने वाला नहीं है।
जहां तक खाद्य सुरक्षा का सवाल है, भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जहां इस मामले में भारी लापरवाही बरती जाती है और सारी फूड सेफ्टी महज कागजों में नजर आती है। देश की किसी भी सरकार को नागरिकों की हेल्थ से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा शायद ही दुनिया के किसी सभ्य देश में होता हो।
कड़े क़ानून नदारद, मिलावटखोर बेखौफ
देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट या उनमें जहरीले तत्वों की मौजूदगी रोकने के लिए तमाम तरह के नियम हैं, लेकिन कड़े कानून नहीं हैं। यहां पैसे के लालच में लोग दवाओं तक में मिलावट कर देते हैं और पकड़े जाने पर आसानी से छूट जाते हैं। माशेलकर कमिटी ने कई साल पहले दवाओं में मिलावट करने या नकली दवाएं बेचने पर मृत्युदंड की सिफारिश की थी, उनकी सिफारिशें, तब से देश में कई सरकारें बदल जाने के बावजूद अब तक धूल खा रही हैं।
फलों, सब्जियों, दूध, मिठाइयों, दालों, मसालों और अन्य तमाम खाद्य पदार्थों में मिलावट या जहरीले तत्वों की मौजूदगी को रोकने के लिए देश में कोई भी सरकार संजीदा नहीं है। यूपी के वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी बताते हैं कि राज्य में खाद्य पदार्थों के सैंपल लेने के लिए न तो पर्याप्त स्टाफ है और न सैंपल की जांच के लिए पर्याप्त लैब्स। जो स्टाफ होता भी है, उसे कभी वीआईपी ड्यूटी में लगा दिया जाता है तो कभी किसी और काम में। कई राज्यों में स्टाफ की इस काम में कोई रुचि ही नहीं होती। करप्शन इसकी सबसे बड़ी वजह है।
साभार
By :-सुरेश उपाध्याय
संपादक :-हेमंत उपाध्याय