अल्मोड़ा : अल्मोड़ा को सांस्कृतिक राजधानी का तमगा यूं ही नहीं मिला है, रंगकर्म यहां के रग-रग में बहता है। अब जब होली के लगभग 10 दिन बचे हैं, ऐसे में अल्मोड़ा अबीर-गुलाल से सराबोर हो गया है। नगर के विभिन्न स्थानों में होली गीतों की धूम मची है। शनिवार को नगर के बद्रेश्वर मन्दिर में महिला दलों ने होली की बैठकी लगा रंग जमा दिया।
अल्मोड़ा में यों तो होली गायन पूष के पहले रविवार से आरंभ हो जाता है, जब ठंड अपने चरम पर होती है। कपकपाती रात में अलाव के आसरे रात-रात भर शास्त्रीय रागों पर होली गायन होता है। बसंत पंचमी से श्रंगार की होलियां गायी जाती हैं। होली का गायन ही अनवरत परंपरा छलड़ी(होली) के दूसरे दिन टीके तक चलती है। यहां होली की बैठकी संध्या से आरंभ हो अगले दिन पौ फटने तक चलती है।
यहां होली में आलू के गुटके, गुजिया और गुड़ एक प्रमुख रवायत है। जिस भी घर में होली गायन होता है वहां होल्यारों(होली गायकों) का स्वागत अबीर के टीके के साथ गोजे से होता है, अतिथियों को नाश्ते में गुट्के के साथ चाय दी जाती है। होली की बैठकी का समापन होता है गुड़ की डली के साथ।
कुमाऊँनी होली का इतिहास
कुमाऊँ में होली गीतों का इतिहास सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुआ। दिलचस्प बात यह है कि उस्ताद अमानत हुसैन नामक एक मुस्लिम कलाकार को कुमाऊँ की होली का जनक माना जाता है। कुमाऊँनी होली का जुड़ाव इतिहास में बृज लोंगों से होने के कारण, इस पारंपरिक होली गायन में राधा – कृष्ण के प्रणय प्रसंग का विवरण दिखता है।