सशस्त्र सेना झंडा दिवस (Armed Forces Flag Day) – 7 दिसंबर। किसी भी राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा का भार उस देश की सेना के कंधों पर होता है। भारत जैसे विशाल और भौगोलिक रूप से विविधतापूर्ण देश में, जहाँ एक तरफ सियाचिन की जमा देने वाली ठंड है तो दूसरी तरफ राजस्थान का तपता रेगिस्तान, हमारी सेना हर परिस्थिति में चट्टान की तरह डटी रहती है। भारतीय सैनिकों के इसी अदम्य साहस, त्याग और बलिदान के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने और उनके कल्याण के लिए सहयोग करने का दिन है—भारतीय सशस्त्र सेना झंडा दिवस।
हर साल 7 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह दिवस केवल एक तारीख नहीं, बल्कि देश के नागरिकों द्वारा अपनी सेना के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक पवित्र अवसर है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: शुरुआत कैसे हुई?
1947 में स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद, भारत को अपनी रक्षा जरूरतों और सैनिकों के कल्याण के लिए एक संगठित प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई। स्वतंत्रता के बाद देश की रक्षा करते हुए कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और कई घायल हुए। ऐसे में सरकार और समाज का यह कर्तव्य था कि वे इन सैनिकों और उनके परिवारों की देखभाल करें।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, 28 अगस्त 1949 को भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री के अधीन एक समिति का गठन किया गया। इस समिति ने सुझाव दिया कि हर साल 7 दिसंबर को ‘झंडा दिवस’ के रूप में मनाया जाए। इस दिन आम नागरिकों को छोटे-छोटे झंडे (स्टिकर) देकर उनसे धन इकट्ठा किया जाए, जिसका उपयोग सैनिकों के कल्याण के लिए हो।
इस प्रकार, 7 दिसंबर 1949 को पहली बार ‘सशस्त्र सेना झंडा दिवस’ मनाया गया। तब से लेकर आज तक, यह परंपरा निर्बाध रूप से चली आ रही है। 1993 में, भारत के रक्षा मंत्रालय ने संबंधित सभी निधियों को एक ही कोष में मिला दिया, जिसे अब ‘सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष’ (Armed Forces Flag Day Fund) के नाम से जाना जाता है।
झंडा दिवस का उद्देश्य और महत्व
झंडा दिवस का मुख्य उद्देश्य देश की तीनों सेनाओं—थल सेना (Army), नौसेना (Navy) और वायु सेना (Air Force)—के कर्मियों के प्रति एकजुटता प्रदर्शित करना है। यह दिन मुख्य रूप से तीन बुनियादी उद्देश्यों को पूरा करता है:
- युद्ध में हताहतों का पुनर्वास: उन सैनिकों की मदद करना जो युद्ध या सैन्य अभियानों के दौरान घायल हुए या दिव्यांग हो गए।
- शहीदों के परिवारों की सहायता: देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले शहीदों की विधवाओं (वीर नारियों) और उनके बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना।
- सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके परिवारों का कल्याण: जो सैनिक अपनी युवावस्था देश की सेवा में लगाकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं, उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करना।
जब एक आम नागरिक अपनी शर्ट की जेब पर सशस्त्र सेना का वह छोटा सा झंडा लगाता है, तो वह केवल दान नहीं दे रहा होता, बल्कि वह यह संदेश दे रहा होता है कि—”मैं अपने सैनिकों के साथ हूँ। उनका बलिदान व्यर्थ नहीं है।” यह भावना सैनिकों के मनोबल को कई गुना बढ़ा देती है।
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सैनिकों का जीवन: चुनौतियों का एक सफर
इस दिन को सही मायने में समझने के लिए हमें एक सैनिक के जीवन को समझना होगा। एक सैनिक जब सीमा पर खड़ा होता है, तो वह अपने परिवार, अपने त्योहारों और अपने आराम को पीछे छोड़ देता है।
- दुर्गम परिस्थितियाँ: हमारे सैनिक -50 डिग्री तापमान में सियाचिन ग्लेशियर पर पहरा देते हैं, जहाँ साँस लेना भी मुश्किल होता है। वे घने जंगलों में आतंकवादियों से लोहा लेते हैं और समुद्र की गहराइयों में पनडुब्बियों के भीतर महीनों तक रहते हैं।
- पारिवारिक त्याग: एक सैनिक अपने बच्चे का पहला कदम, माता-पिता की बीमारी या पत्नी का सुख-दुःख—अक्सर इन पलों से दूर रहता है। वे दीवाली, ईद या क्रिसमस घर पर नहीं, बल्कि बंकरों में मनाते हैं ताकि हम अपने घरों में चैन से सो सकें।
- अनिश्चितता: जब एक सैनिक घर से निकलता है, तो उसे नहीं पता होता कि वह वापस तिरंगे में लिपट कर आएगा या अपने पैरों पर चलकर।
झंडा दिवस हमें याद दिलाता है कि हम जो आज़ादी की साँस ले रहे हैं, उसकी कीमत किसी ने अपनी जवानी और जान देकर चुकाई है।
नागरिकों की भूमिका और नैतिक जिम्मेदारी
अक्सर हम सोचते हैं कि देश की रक्षा करना केवल सरकार या वर्दीधारी सैनिकों का काम है। लेकिन, राष्ट्रीय सुरक्षा एक सामूहिक जिम्मेदारी है। जहाँ सैनिक सीमाओं की रक्षा करते हैं, वहीं नागरिकों का कर्तव्य है कि वे उन सैनिकों के परिवारों की रक्षा करें।
सशस्त्र सेना झंडा दिवस हम सभी को यह अवसर देता है कि हम अपनी कृतज्ञता को शब्दों से आगे बढ़ाकर कर्म में बदलें। यह दान कोई ‘भिक्षा’ नहीं है, बल्कि यह उस ‘ऋण’ को चुकाने का एक छोटा सा प्रयास है जो हम पर हमारे रक्षकों का है।
जब हम झंडा दिवस कोष में योगदान करते हैं, तो हम सुनिश्चित करते हैं कि:
- शहीद की बेटी की शिक्षा न रुके।
- घायल सैनिक को कृत्रिम अंग मिल सके।
- बूढ़े पूर्व सैनिक को चिकित्सा सुविधा मिल सके।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष (AFFDF) का प्रबंधन
झंडा दिवस पर एकत्रित की गई राशि का प्रबंधन केंद्रीय सैनिक बोर्ड (Kendriya Sainik Board – KSB) द्वारा किया जाता है, जो रक्षा मंत्रालय का एक हिस्सा है। यह एक अत्यंत पारदर्शी प्रक्रिया है। इस कोष का उपयोग निम्नलिखित कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाता है:
- पेन्युरी ग्रांट (Penury Grant): 65 वर्ष से अधिक आयु के गैर-पेंशनभोगी पूर्व सैनिकों को वित्तीय सहायता।
- शिक्षा अनुदान: शहीदों या पूर्व सैनिकों के बच्चों की शिक्षा (स्कूल से लेकर कॉलेज तक) के लिए छात्रवृत्ति।
- दिव्यांग बच्चों के लिए सहायता: सैनिकों के दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष मदद।
- विवाह अनुदान: पूर्व सैनिकों की बेटियों की शादी के लिए आर्थिक मदद।
- घर की मरम्मत और चिकित्सा उपचार के लिए अनुदान।
आज के डिजिटल युग में योगदान
पहले के समय में, स्वयंसेवक स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में जाकर डिब्बों में चंदा इकट्ठा करते थे और बदले में स्टीकर वाला झंडा देते थे। यह परंपरा आज भी जारी है, लेकिन डिजिटल क्रांति ने इसे और आसान बना दिया है।
आज कोई भी नागरिक घर बैठे केंद्रीय सैनिक बोर्ड (KSB) की वेबसाइट या अन्य डिजिटल पेमेंट माध्यमों (UPI, QR Code) के जरिए सीधे ‘सशस्त्र सेना झंडा दिवस कोष’ में दान कर सकता है। यह योगदान आयकर अधिनियम की धारा 80G के तहत कर-मुक्त (Tax Free) भी होता है।
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स्कूलों और कॉलेजों में इस दिन विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जहाँ बच्चों को सेना के शौर्य की गाथाएँ सुनाई जाती हैं। एनसीसी (NCC) कैडेट्स और स्काउट्स-गाइड्स इस दिन विशेष भूमिका निभाते हैं और समाज में जागरूकता फैलाते हैं।
एक सलाम उन वीरों के नाम
अंत में, 7 दिसंबर केवल एक रस्म अदायगी का दिन नहीं होना चाहिए। यह दिन आत्ममंथन का है। हमें यह सोचना चाहिए कि जिन वीर जवानों ने “सेवा परमो धर्म:” (Service Before Self) के मंत्र को अपने जीवन का आधार बनाया, क्या हम उनके लिए अपनी एक दिन की कमाई या कुछ हिस्सा भी समर्पित नहीं कर सकते?
भारतीय सशस्त्र सेना झंडा दिवस राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। यह वह धागा है जो सरहद पर खड़े प्रहरी को देश के आम नागरिक से जोड़ता है। आइए, इस 7 दिसंबर को हम सब मिलकर संकल्प लें कि हम अपने सैनिकों के बलिदान को कभी नहीं भूलेंगे। हम न केवल आर्थिक रूप से योगदान करेंगे, बल्कि अपने सैनिकों और उनके परिवारों को वह सम्मान भी देंगे जिसके वे हकदार हैं।
आपकी छोटी सी मदद किसी वीर नारी के चेहरे पर मुस्कान ला सकती है, किसी अनाथ बच्चे का भविष्य संवार सकती है और किसी घायल सैनिक को यह विश्वास दिला सकती है कि पूरा देश उसके साथ खड़ा है।
“आओ देश का सम्मान करें, शहीदों की शहादत को याद करें। जो कुर्बान हो गए मेरे देश पर, उन्हें सर झुकाकर सलाम करें।”
जय हिन्द! जय भारत! भारतीय सेना की जय!
