सुरेश उपाध्याय, नई दिल्ली: पेटेंटेड दवाओं के मनमाने दाम आम भारतीयों की जेब पर बहुत भारी पड़ रहे हैं और इन पर लगाम लगाने के मामले में सरकार की खामोशी बरकरार है। इसके कारण दवा कंपनियां ऐसी तमाम दवाओं को मनमाने दामों पर बेचने के लिए आजाद हैं और लोगों के पास इस मनमानी को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
कई संगठन और हेल्थ वर्कर्स सरकार से पेटेंटेड दवाओं के दामों की भी कैपिंग करने की मांग कर चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आया है। वह भी तब, जब एनडीए सरकार काफी पहले इन दवाओं के रेट पर लगाम लगाने का इरादा जता चुकी है। पेटेंटेड दवाएं वह होती हैं, जिन पर किसी कंपनी को पेटेंट मिला होता है। इन्हें उस कंपनी के अलावा और कोई नहीं बना सकता।
ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क की मालिनी ऐशोला कहती हैं कि जब सरकार 800 से ज्यादा जेनरिक दवाओं के रेट्स की कैपिंग कर चुकी है तो पेटेंटेड दवाओं के दामों की कैपिंग क्यों नहीं की जाती? उनके मुताबिक, ऐसा न होने के कारण देश के हर शख्स को दवाओं की मद में हर साल मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है।
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यूपीए सरकार ने 2012 में इस मामले में एक बड़ी पहल की थी। उसने कैंसर की एक दवा के विदेशी कंपनी के पेटेंट को अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करके खारिज कर दिया था। इसके बाद उसने हैदराबाद की एक भारतीय कंपनी को इसे बनाने की परमिशन दी। इसके कारण जहां जर्मन कंपनी इस दवा की एक महीने की डोज को करीब ढाई लाख रुपये में बेचती थी, वही दवा भारतीय कंपनी ने करीब 33 हजार रुपये में मुहैया करा दी।
हेल्थ वर्कर्स का कहना है कि ऐसी बहुत सी दवाएं हैं, जिनके मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं और उन्हें प्राइस कंट्रोल के दायरे में नहीं लाया जा रहा है। इसके कारण गरीब पेशंट्स पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ रहा है। सूत्रों का कहना है कि दवा कंपनियों के दबाव के कारण सरकार पेटेंटेड दवाओं को प्राइस कंट्रोल के दायरे में लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है।
सरकार ने कुछ अर्सा पहले दिल की धमनियों में लगने वाले स्टेंट्स और नी इंप्लांट्स के रेट फिक्स किए थे तो बड़ी और मल्टिनैशनल कंपनियों ने इसका खासा विरोध किया था। उन्होंने अमेरिकी सरकार के जरिए भारत पर दबाव भी डाला था। सरकार ने दबाव में आकर इनके रेट की कैपिंग तो नहीं हटाई, लेकिन अन्य मेडिकल डिवाइसेस के रेट फिक्स करने का काम ठप हो गया है। इनके रेट्स की कैपिंग करने वाले अधिकारी को भी तब एनडीए सरकार ने हटा दिया था।
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By :-सुरेश उपाध्याय
संपादक :-हेमंत उपाध्याय