देहरादून: उत्तराखंड में पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रहे जनप्रतिनिधियों को निराशा हाथ लगी है। राज्य सरकार ने महाधिवक्ता की राय के बाद पंचायतों का कार्यकाल नहीं बढ़ाने का फैसला लिया है। कोविड-19 महामारी के दौरान पंचायतों को हुए नुकसान का हवाला देते हुए उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत संगठन ने पंचायतों का कार्यकाल दो साल बढ़ाने की मांग की थी। संगठन का कहना था कि महामारी के कारण पंचायतें बजट और संसाधनों की कमी से जूझती रहीं और उनकी बैठकें तक नहीं हो पाईं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मांग पर गौर करते हुए सचिव पंचायतीराज को मामले का परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने मामले का अध्ययन करने के बाद कहा कि संविधान के अनुच्छेद 243 के अनुसार पंचायतों का कार्यकाल पांच साल का होता है। इसे बढ़ाया नहीं जा सकता। उन्होंने अपनी राय में कहा कि पंचायतों का कार्यकाल बढ़ाने से संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होगा। पंचायत प्रतिनिधि इस फैसले से काफी निराश हैं। उनका कहना है कि कोविड-19 महामारी ने पंचायतों को काफी नुकसान पहुंचाया है और उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने के लिए तैयार होने में समय लगेगा।
राज्य सरकार ने महाधिवक्ता की राय को मानते हुए पंचायतों का कार्यकाल नहीं बढ़ाने का फैसला लिया है। सरकार का कहना है कि वह पंचायतों को मजबूत बनाने के लिए अन्य उपाय करेगी।
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पंचायत प्रतिनिधि अब इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च न्यायालय भी संविधान के प्रावधानों के खिलाफ जाकर कोई आदेश जारी करने की संभावना नहीं रखता है।